
रहो किसी भी दशा दिशा में, तुम अपने बच्चों का प्यार हो माँ
चला मैं जिस नाँव को यूँ ही लेकर,
उस नैया की तुम्ही तो पतवार हो माँ
पहुंचा हूँ आज जिन बुलंदियों पर,
तुम्ही तो उस इमारत का आधार हो माँ
चला मैं जिस राह पर मंजिलों तक,
तुम्ही तो उस पथ का द्वार हो माँ
जब जब मैं यूँ ही मुस्कुराया,
तुम्ही तो हंसी की फुहार हो माँ
चोट जब भी लगी है मुझको,
तो दर्द के आंसूअन की धार हो माँ
जब छाये निराशा की बदरी,
तुम ही तो सुनहरी विहान हो माँ
तुम ही हो मेरे काबा और काशी,
तुम ही तो मेरे सब धाम हो माँ
अर्पण है तुम्हे ये सारा जीवन,
करता हूँ शत शत प्रणाम लो माँ..
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