Friday, September 16, 2011

मन्ज़िलें

ए मेरी ज़िन्दगी, थम गयी तू कहीं।
उठ ज़रा चल चलें, रास्तों पे कहीं।
मंद साँसे हैं क्यूँ, क्यूँ थमीं धड़कनें।
देख पलकें बिछा, ताकती मन्ज़िलें॥

माना तन्हा हैं राहें, और मुश्किल सफ़र है।
तेरे रब की दुआ भी, साथ तेरे मगर है।
किसको ढूंढें निगाहें, ये कदम क्यूँ रुके।
देख फैलाये बाहें, पुकारती मंजिलें॥

चुप सी सांसों को तू, एक आवाज़ दे।
ख्वाब देखें निगाहें, उनको परवाज़ दे।
अब थकें ना कदम, ये चलें बस चलें।
चल पड़े खुद ही मंजिल, मिलने तुझसे गले॥

ए मेरी ज़िन्दगी, उठ ज़रा अब चलें।
देख रस्ता तेरा, निहारती मंजिलें !!

Wednesday, February 23, 2011

कारवाँ

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता..

मिले भी जाये गर आसमाँ और ज़मीं कभी,
राही तेरे ख्वाबों को आशियाँ नहीं मिलता..

हसरतें हैं बड़ी इस छोटी सी ज़िन्दगी में,
थक जाते हैं रास्ते, तेरी तिशनगी का कारवाँ नहीं थमता..

चाहते तो हैं जाने की मंजिलों तक,
कभी राही तो कभी रास्ता नहीं मिलता..

चाहे हर कोई यहाँ पाना अपने रब को,
पर चाहने भर से तो खुदा नहीं मिलता..

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता..